भारत के राष्ट्रीय ध्वज का इतिहास एवं इसके फहराने एवं ध्वजारोहण के नियम(गणतंत्रता और स्वतंत्रता दिवस स्पेशल)
भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का इतिहास
- साल 1906 में भारत के राष्ट्रीय ध्वज की कल्पना की गई थी।
- 1917 में होम रूल आंदोलन के दौरान एनी बेसेंट और बाल गंगाधर तिलक ने एक झंडा फहराया था। जो तिरंगे से मिलता जुलता था।
- वर्ष 1921 में कांग्रेस के विजयवाड़ा अधिवेशन में आंध्र प्रदेश के 'पिंगली वेंकैया' ने महात्मा गांधी को एक नए ध्वज का डिज़ाइन दिखाया।
- अगस्त 1931 में कांग्रेस ने अपने वार्षिक सम्मेलन में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित किया।
- 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा की बैठक में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया।
ध्वज संहिता:-
26 जनवरी 2002 को भारतीय ध्वज संहिता में संशोधन किया गया और स्वतंत्रता के कई वर्ष बाद भारत की नागरिकों को अपने घरों, कार्यालयों और फैक्ट्रियों में न केवल राष्ट्रीय दिवस पर बल्कि किसी भी दिन बिना किसी रूकावट के ध्वज फहराने की अनुमति दी गई। वर्तमान में भारतीय नागरिक राष्ट्रीय झंडे को ध्यान से कहीं भी और किसी भी समय फहरा सकते हैं।
26 jan. 2002 ध्वज संहिता के बारे में:-
- राष्ट्रीय ध्वज को शैक्षणिक संस्थानों (विद्यालय, महाविद्यालय, खेल परिसरों और स्काउट शिविर आदि) में ध्वज को सम्मान देने की प्रेरणा देने के लिए फहराया जा सकता हैं।
- किसी सार्वजनिक निजी संस्थान या एक शैक्षिक संस्थान के सदस्य द्वारा राष्ट्रीय ध्वज का प्रदर्शन सभी दिनों और अवसरों,आयोजनों पर अन्यथा राष्ट्रीय ध्वज के मान सम्मान और प्रतिष्ठा के अनुरूप अवसरों पर किया जा सकता हैं।
- नई ध्वज संहिता की धारा 2 में सभी आम नागरिकों को अपने निजी परिसर में ध्वज फहराने का अधिकार देना स्वीकार किया गया है।
- राष्ट्रीय ध्वज को सांप्रदायिक लाभ, पर्दे या वस्त्रों के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है। जहाँ तक संभव हो इसे मौसम से प्रभावित हुए बिना सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाना चाहिए।
- इस ध्वज को हास्य पूर्वक तथा जानबूझकर भूमि पर या पानी से स्पर्श नहीं कराया जाना चाहिए। इसे वाहनों की हुड और बगल या पीछे नहीं लपेटा जा सकता हैं।
- किसी अन्य ध्वज या ध्वजपट्ट को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे से ऊंचे स्थान पर नहीं लगाया जा सकता है। राष्ट्रीय ध्वज को वंदनवार (सजावट में काम आने वाला) के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की विशेषताएं
ध्वज के रंग :-
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में मुख्य रूप से तीन की पट्टियाँ पाई जाती है। इसी कारण इसे तिरंगा कहा जाता है, उनकी व्याख्या इस प्रकार है:- पट्टी में केसरिया रंग है जो भारत देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निजली हरी पट्टी उर्वरता वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है।
अशोक चक्र:-
इस धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ स्तंभ से लिया गया है इस चक्कर को प्रदर्शित करने का आशय यह ही है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
ध्वज निर्माण से संबंधित प्रक्रिया:-
राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण सम्मान सहित किया जाना चाहिए , लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होना चाहिए। ध्वज निर्माण में उपयोग में लिया गया प्रत्येक कपड़ा शुद्ध कॉटन से निर्मित होना चाहिए। ध्वज निर्माण का अधिकार कुछ सरकारी संस्थाओं के पास ही है । लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर हर घर तिरंगा अभियान के कारण इसमें कुछ बदलाव किए गए और निजी संस्थाओं को भी राष्ट्रीय ध्वज निर्माण का अधिकार दिया गया और ध्वज को पॉलिएस्टर और अन्य कपड़ों से भी बनाया जा सकता है। निजी संस्थाएं ध्वज निर्माण के समय ध्वज की प्रतिष्ठा और सम्मान का ध्यान रखेगी ।
पुराने या फटे हुए ध्वज को एकांत में अर्थात् बिना प्रदर्शन किए हुए नष्ट करना चाहिए।

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